भीड़
इस मुल्क में
अगर कुछ सबसे खतरनाक है
तो यह भीड़
यह भीड़ जो ना जाने कब कैसे
और कहाँ से निकल कर आ जाती है
और छा जाती है सड़कों पर
और धूल उड़ा कर
खो जाती है उसी धूल में कहीं
लेकिन पीछे छोड़ जाती है
लाल सुरख गहरे निशान
जो ता उम्र उभरते दिखाई देते हैं
इस मुल्क के जिस्म पर
लेकिन क्या है यह भीड़
कैसी है यह भीड़
कौन है यह भीड़
इसकी पहचान क्या है
इसका नाम क्या है
इसका जाति दीन धर्म ईमान क्या है
इसका कोई जनम सर्टिफिकेट नहीं हैं क्या
इसका कोई पैन आधार नहीं है क्या
इसकी उँगलियों के निशान नहींं हैं क्या
इसका कोई वोटर कार्ड या
कोई प्रमाण पत्र नहीं हैं क्या
भाषण देने वालो में
इतनी चुप्पी क्यों है अब
इन सब बातों के उत्तर नहीं हैं क्या
उत्तर हैं
उत्तर तो हैं लेकिन सुनेगा कौन
सुन भी लिया तो सहेगा कौन
और सुनकर पढ़कर
अपनी आवाज़ में कहेगा कौन
अब पढ़ना पड़ेगा
सहना पड़ेगा और समझना पड़ेगा
कैसी है यह भीड़
कोई अलग चेहरा नहीं है इसका
कोई अलग पहरावा नहीं है इसका
कोई अलग पहचान नहीं है इसकी
कोई अलग जाति नहीं है इसकी
कोई अलग तबका नहीं
अलग दीन ईमान नहीं
कोई अलग धर्म नहीं है इसका
मैं तुम यह वो
हम सब चेहरे हैं इसके
दरिंदगी पहरावा है इसका
हैवानियत पहचान है इसकी
बेशर्मी जाति
वहशत तबका
जलालत दीन ईमान
और बेहयाई धर्म है इसका
दंगा फसाद कर्म है इसका
हवस इसकी आँखों में छलकती है
क्रुर हंसी इसकी ज़ुबान से टपकती है
इसके माथे पर टीका
या कंधे पर तावीज़ लटकते हैं
अपने-अपने मज़हब के नारे
इसकी ऊँची आवाज़ में गरजते हैं
हाथ इसके निहत्थे बेबस
बेगुनाहों के खून से रंगे हैं
और रूह इसकी
इसके जिस्म के अंदर ही
इसी के अपने ज़मीर से लटक कर
आत्म हत्या कर चुकी है
यह अपने आप से निराश
अपनी ज़िंदगी से हताश
यह बहके भटके
जो लोग घूम रहे हैं
जो ढूँढ रहे हैं
कोई अकेला निहत्था लाचार
जो बुझा सकें यह अपने दिल की आग
मिटा सकें अपनी हवस की प्यास
जो भर सकें यह
अपने अंधे धर्म की गवाही
और साबित कर सकें
अपने सच्चे गुनाहों की
झूठी बेगुनाही
यह है वो भीड़
बहकी हुई
भटकी हुई भीड़
जिससे जितना हो सके
बचना ज़रूरी है
माफ़ करना पाश
लेकिन अब मुर्दा शांति से
भर जाना खतरनाक नहीं रहा
सपनों का मर जाना भी
अब उतना खतरनाक नहीं रहा
जो तुम्हरे ज़माने में हुआ करता था
अब अगर इस मुल्क में
कुछ सबसे खतरनाक है
तो यह भीड़
यह बहकी हुईयह भटकी हुई भीड़
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Thanks for your valuable time and support. (Arun Badgal)