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BHEED

भीड़    इस मुल्क में    अगर कुछ सबसे खतरनाक है तो यह भीड़ यह भीड़ जो ना जाने कब कैसे  और कहाँ से निकल कर आ जाती है और छा जाती है सड़कों पर   और धूल उड़ा कर    खो जाती है उसी धूल में कहीं   लेकिन पीछे छोड़ जाती है   लाल सुरख गहरे निशान   जो ता उम्र उभरते दिखाई देते हैं   इस मुल्क के जिस्म पर लेकिन क्या है यह भीड़   कैसी है यह भीड़    कौन है यह भीड़   इसकी पहचान क्या है   इसका नाम क्या है   इसका जाति दीन धर्म ईमान क्या है   इसका कोई जनम सर्टिफिकेट नहीं हैं क्या   इसका कोई पैन आधार नहीं है क्या   इसकी उँगलियों के निशान नहींं हैं क्या इसका कोई वोटर कार्ड या    कोई प्रमाण पत्र नहीं हैं क्या   भाषण देने वालो में   इतनी चुप्पी क्यों है अब इन सब बातों के उत्तर नहीं हैं क्या उत्तर हैं उत्तर तो हैं लेकिन सुनेगा कौन सुन भी लिया तो सहेगा कौन और सुन‌कर पढ़कर अपनी आवाज़ में कहेगा कौन लेकिन अब लिखना पड़ेगा अब पढ़ना पड़ेगा  कहना सुनना पड़ेगा सहना पड़ेगा और समझना पड़ेगा कि क्या है यह भीड़ कैसी है यह भीड़  कौन है यह भीड़ कोई अलग चेहरा नहीं है इसका  कोई अलग पहरावा नहीं है इसका कोई अलग पहचान नहीं है इसकी क
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Akhri Dua - Punjabi Poem

  ਰੱਬ ਕਰੇ ਇਹ ਰੂਹ ਮੇਰੀ ਜੁਦਾ ਇਸ ਦੇਹ ਤੋਂ ਹੋ ਜਾਵੇ  ਖੰਭ ਲਗਾ ਕੇ ਮਾਰ ਉਡਾਰੀ ਓਹਦੀ ਜੂਹੇ ਜਾਣ ਖਲੋ ਜਾਵੇ  ਓਹਦੇ ਪੈਰਾਂ ਨੂੰ ਚੁੰਮੇ ਓਹਦੇ ਚਾਰ - ਚੁਫ਼ੇਰੇ ਘੁੰਮੇ  ਓਹਦੀ ਕਰੇ ਪਰਿਕਰਮਾ ਓਹਦੇ ਦਰ ਦੀ ਖੇਹ ਹੋ ਜਾਵੇ  ਰੱਬ ਕਰੇ ਇਹ ਰੂਹ ਮੇਰੀ ਜੁਦਾ ਇਸ ਦੇਹ ਤੋਂ ਹੋ ਜਾਵੇ  ਓਹਦੇ ਬੈਠ ਬਨੇਰੇ ਬਿੜਕਾਂ ਲਵੇ ਵਾਂਗ ਕਾਲਿਆਂ ਕਾਵਾਂ  ਹਰ ਸਾਹ ਓਹਦੇ ਨਾਲ ਰਹੇ ਬਣ ਓਹਦਾ ਪਰਛਾਵਾਂ  Click to Read Full Poem (Pay to View Content)

Gham Mein Hun

मैं ग़म में हूँ  मैं ग़म में हूँ  ग़मों के यम में हूँ मैं मर गया मुझमें ही कहीं  मैं ख़ुद ख़ुदी के मातम में हूँ  मैं ग़म में हूँ  महकते फूल तरसते रहे  चंद मोतियों के लिए  मैं किसी गंद पे गिरी शबनम में हूँ  मैं ग़म में हूँ  जो किसी ने दी किसी को महज़ तोड़ने के लिए  मैं किसी के सिर की झूठी क़सम में हूँ  मैं ग़म में हूँ  ज़िंदगी के रास्ते में  पिछड़ गया मैं ख़ुद से  लेकिन दुनिया के काफ़िले में मुक़द्दिम में हूँ  मैं ग़म में हूँ  अपनी नज़रों में  बिख़र गया हूँ तिनका तिनका करके  यूँ आईने में देखूँ तो मुसल्लम में हूँ  मैं ग़म में हूँ  तुम हमदम हो गए  किसी ग़ैर के संग  मैं अभी भी तेरे मेरे वाले हम में हूँ  मैं ग़म में हूँ  कैसे चल लेते हो  बेवफ़ाई संग अकड़ कर  मैं तो वफ़ा संग भी ख़म में हूँ  मैं ग़म में हूँ  खाने से पहले तुम्हारे लिए  निकाल देता हूँ पहला निवाला  मैं अभी भी उस मुहब्बत के उस नियम में हूँ  मैं ग़म में हूँ  अरे! मत दो मुझे  हंसी की दावत का न्योता  मैं खुशियों की बरादरी में महरम में हूँ  मैं ग़म में हूँ  लोग यूँ ही जलते रहे  देख हमारे रोशन चुबारे  मैं अँधेरे कमरों में बसे सहम में हूँ  मैं ग़म में हूँ  वो ढूँढ़त

PAAR

ਉਹ ਕਹਿੰਦਾ... ਚੱਲ ! ਚੰਨ ਤੇ ਤਾਰਿਆਂ ਪਾਰ ਚੱਲੀਏ  ਮੈਂ ਕਹਿਣਾਂ...  ਛੱਡ ! ਪਿੰਡ ਦੇ ਢਾਰਿਆਂ ਪਾਰ ਚੱਲੀਏ  ਉਹ ਕਹਿੰਦਾ... ਚੱਲ ! ਤੱਕੀਏ ਅੰਬਰਾਂ ਤੋਂ ਪਾਰ ਦੇ ਨਜ਼ਾਰੇ ਮੈਂ ਕਹਿਣਾਂ...  ਛੱਡ ! ਏਹਨਾਂ ਸਭ ਨਜ਼ਾਰਿਆਂ ਪਾਰ ਚੱਲੀਏ  ਉਹ ਕਹਿੰਦਾ... ਚੱਲ ! ਦੁਨੀਆ ਜਿੱਤ ਕੇ ਦਿਖਾ ਦੇਈਏ ਦੁਨੀਆ ਨੂੰ  ਮੈਂ ਕਹਿਣਾਂ...  ਛੱਡ ! ਖ਼ੁਦ ਖ਼ੁਦੀ ਤੋਂ ਹਾਰਿਆਂ ਪਾਰ ਚੱਲੀਏ  ਉਹ ਕਹਿੰਦਾ... ਚੱਲ ! ਦੁਨੀਆ `ਤੇ ਲਿਖ ਦੇਈਏ ਨਵੇਂ ਇਸ਼ਕ ਦੀ ਕਹਾਣੀ  ਮੈਂ ਕਹਿਣਾਂ...  ਛੱਡ ! ਇਸ ਝੂਠੀ ਮੁਹੱਬਤ ਦੇ ਝੂਠੇ ਲਾਰਿਆਂ ਪਾਰ ਚੱਲੀਏ  ਉਹ ਕਹਿੰਦਾ... ਚੱਲ ! ਦੇਖੀਏ ਕਿਦਾਂ ਸੂਰਜ ਦੁਆਲੇ ਨੇ ਘੁੰਮਦੇ ਗ੍ਰਹਿ  ਮੈਂ ਕਹਿਣਾਂ...  ਛੱਡ ! ਮੰਡੀਆਂ `ਚ ਘੁੰਮਦੇ ਜੱਟ ਮਾੜਿਆਂ ਪਾਰ ਚੱਲੀਏ  ਉਹ ਕਹਿੰਦਾ... ਚੱਲ ! ਮਾਣੀਏ ਠੰਡੀ ਰਾਤ `ਚ ਅਕਾਸ਼ਗੰਗਾ ਦਾ ਦ੍ਰਿਸ਼  ਮੈਂ ਕਹਿਣਾਂ...  ਛੱਡ ! ਧੁੱਪੇ ਵਾਢੀ ਕਰਦੇ ਕਿਰਤੀ ਵਿਚਾਰਿਆਂ ਪਾਰ ਚੱਲੀਏ  ਉਹ ਕਹਿੰਦਾ... ਛੱਡ ! ਉੱਡ ਚੱਲੀਏ ਏਹਨਾਂ ਵਹਿਮਾਂ, ਧਰਮਾਂ, ਜ਼ਾਤਾਂ ਤੋਂ ਪਾਰ  ਮੈਂ ਕਹਿਣਾਂ...  ਚੱਲ ! ਪਿੱਛਲੇ ਦੰਗਿਆਂ `ਚ ਘਰ ਉਜਾੜਿਆਂ ਪਾਰ ਚੱਲੀਏ  ਉਹ ਕਹਿੰਦਾ... ਛੱਡ ! ਚੱਲੀਏ ਇਸ ਨਿਆਂ-ਅਨਿਆਂ ਦੇ ਚੱਕਰਾਂ ਤੋਂ ਪਾਰ  ਮੈਂ ਕਹਿਣਾਂ... ਚੱਲ ! ਜੇਲ੍ਹਾਂ `ਚ ਬੰਦ ਭੁੱਲਰ-ਹਵਾਰਿਆਂ ਪਾਰ ਚੱਲੀਏ  ਉਹ ਕਹਿੰਦਾ... ਛੱਡ ! ਚੱਲ ਚੱਲੀਏ ਕਿ ਹੁਣ ਦੁਨੀਆ `ਤੇ ਕੱਖ ਵੀ ਨਹੀਂ ਰਿਹਾ  ਮੈਂ ਕਹਿਣਾਂ... ਚੱਲ ! ਪਹਿਲਾਂ ਏਹਨਾਂ ਕੱਖਾਂ ਵਲ

MOH DA DARYAA

ਮੋਹ ਦੇ ਦਰਿਆ ਤੋਂ ਨਫ਼ਰਤ ਦੇ ਸਮੁੰਦਰ ਤਕ ਦੀ ਏ ਕਹਾਣੀ ਮੇਰੀ  ਤੈਨੂੰ ਤਾਂ ਪਤਾ ਈ ਹੋਣਾ ਆਹ ਜੋ ਕੁਝ ਵੀ ਏ ਸਭ ਮਿਹਰਬਾਨੀ ਤੇਰੀ  ਮੈਂ ਮਣਕਾ ਮਣਕਾ ਜੋੜ ਕੇ ਕਰਮਾਂ ਦਾ ਪਰੋਇਆ ਕਿਰਦਾਰ ਮੇਰੇ ਦੇ ਧਾਗੇ ਦੇ ਵਿੱਚ  ਤੂੰ ਲਗਾ ਇਲਜ਼ਾਮ ਦਰ ਇਲਜ਼ਾਮ ਉਧੇੜ ਸੁੱਟ'ਤੀ ਇੱਜ਼ਤ ਵਾਲੀ ਗਾਣੀ ਮੇਰੀ  ਮੈਂ ਬੜਾ ਪੈਂਡਾ ਤੁਰਿਆਂ ਨੰਗੇ ਪੈਰੀਂ ਆਪਣੇ ਮਾਂ-ਪਿਉ ਦੀਆਂ ਉਮੀਦਾਂ 'ਤੇ  ਤੂੰ ਤਕਰਾਰਾਂ ਦੀ ਵਿੱਥ ਪਾ-ਪਾ ਕੇ ਬੜੀ ਦੂਰ ਕਰ'ਤੀ ਮੇਰੀ ਮੰਜ਼ਿਲ ਤੋਂ ਰਵਾਨੀ ਮੇਰੀ  ਮੈਂ ਤੇਰੇ ਝੂਠੇ-ਸੱਚੇ ਮੇਹਣਿਆਂ ਨੂੰ ਦਰਜ ਕਰਦਾ ਰਿਹਾ ਵਾਂਗ ਧਾਰਾਵਾਂ ਦੇ  ਮੈਂ ਖ਼ੁਦ ਨੂੰ ਸਜ਼ਾ- ਏ- ਚੁੱਪ ਸੁਣਾ ਬੈਠਾ ਸੁਣ ਕੇ ਪੇਸ਼ੇਵਰ ਬਿਆਨੀ ਤੇਰੀ  ਮੈਂ ਹੱਥੀਂ ਗਲੇ ਘੋਟ'ਤੇ ਨਜ਼ਮਾਂ ਦੇ ਤੇ ਕਲਮ ਦੀ ਕੋਖ਼ 'ਚ ਹੀ ਮਾਰ'ਤੇ ਸਾਰੇ ਲਫ਼ਜ਼ ਮੇਰੇ  ਤਾਂ ਜੋ ਮੇਰੇ ਦਿਲ ਦੇ ਬਚੇ ਵਰਕੇ 'ਤੇ ਇੱਕ ਲੀਕ ਵੀ ਨਾ ਰਹਿ ਜਾਵੇ ਨਿਸ਼ਾਨੀ ਤੇਰੀ  ਮੋਹ ਦੇ ਦਰਿਆ ਤੋਂ ਨਫ਼ਰਤ ਦੇ ਸਮੁੰਦਰ ਤਕ ਦੀ ਏ ਕਹਾਣੀ ਮੇਰੀ  ਤੈਨੂੰ ਤਾਂ ਪਤਾ ਈ ਹੋਣਾ ਆਹ ਜੋ ਕੁਝ ਵੀ ਏ ਸਭ ਮਿਹਰਬਾਨੀ ਤੇਰੀ  Moh de daryaa to nafrat de samundar tak di e kahani meri Tainu ta pta hi hona eh jo kujh vi hai sab meharbani teri Main manka manka jod ke karma'n da paroya kirdar mere de dhaage de vich Tu lga ilzam dar ilzam udhed sutt diti izzat vali gaan

MORPANKHI

तो बच्चो, आज क्या पढ़ेंगे हम - विश्लेषण  बोलो क्या पढ़ेंगे - विश्लेषण  यह बोल के मैंने पीछे देखा तो सारे बच्चे मायूस सा चहरा बना कर बैठे हुए थे।  कोई भी कुछ ना बोला। यहाँ तक कि पहले बैंच पर बैठने वाली सन्ध्या और उसकी सहेलियां भी नहीं और आखरी बैंच पर बैठने वाले शैतान राजू , विनीत और हरिया भी नहीं। तो मैंने बड़ी बेचैनी से पूछा - क्या हुआ आज कोई कुछ बोल क्यूँ नहीं रहा ? तो हरिया सबसे पहले बोला - सर हमारे साथ चीटिंग (cheating) हुई है आज। कल तक तो सरकारी छुट्टी थी आज , और फिर अचानक ही छुट्टी कैंसिल (cancel) हो गई। आज हमारे साथ चीटिंग हुई है आज हम कुछ नहीं पढ़ेंगे।  यह सुन कर सारी की सारी कक्षा एक साथ बोलने लगी - हम नहीं पढ़ेंगे आज, हम नहीं पढ़ेंगे।  तो मैंने पूछा कि अगर पढ़ना नहीं है तो क्या करना है।  अब मैं अपनी मर्ज़ी से तो छुट्टी नहीं कर सकता आप लोगों को। जो सरकार कहती है वो मानना पड़ता है।  और वैसे भी यह आखरी पीरियड (period) ही तो है।  सन्ध्या के बगल में बैठी निकिता झट से बोली - सर आज कोई कहानी सुनाओ।  आज हमारा पढ़ने का मन नहीं।  अब इतने प्यारे और मासूम बच्चों की बात को टालना मेरे बस की तो बात नह

MULK - Hindi Translated

  Read MULK (Punjabi Poetry) here मैंने कल रेडियो पर सुना  कि इस मुल्क के दिन बदल गए हैं  इस मुल्क की आवाम बदल गई है  इस मुल्क के चेहरे-चिन्ह बदल गए हैं  मैंने सुना इस मुल्क की बड़ी तरक्की हो गई है  इस मुल्क में बड़े कमाल हो गए हैं  कहते हैं कि गाँव क़स्बे और क़स्बे शहर हो गए हैं  दुकानें शौरूम और बाज़ार मॉल हो गए हैं  कहते हैं कि हाट वाला लाला अब बड़ा बिज़नेसमैन हो गया है  लेकिन वो फेरी लगाने वाले करमू का क्या ? जिसकी टाँगें पत्थर हो गयीं फेरी लगा लगा कर  जिसके गले में ही बैठ गई उसकी ऊँचीं कड़क आवाज़  गलियों में आवाज़ें लगा लगा कर  जिसने बढ़ा लिए अपने सफ़ेद दाढ़ी और सफ़ेद बाल  शायद कुछ पैसे बचाने के लिए  और उस तीरथ नाई का क्या ? जो आज भी बैठा है वहीं उसी चौंक में  उसी पेड़ के नीचे  वही एक कुर्सी और एक शीशा  दो कैंची दो कंघी आज भी उसके वही औज़ार हैं  और वही उसके ग्राहक हैं  वह राजू रिक्शे वाला  जिसे बीस रुपये देना आज भी ज़्यादा लगता है  स्कूल वाली टीचर और बैंक वाली क्लर्क मैडम को  माना कि अब उसके पास रिक्शे की जगह आ गया ई-रिक्शा  अब पैडल ना मारने की वजह से उसकी चप्पल का स्ट्रैप नहीं निकलता  लेकिन चप्पल