A Tribute to our Soldiers who lost their lives in Siachen Avalanche
क्या बात करूँ अपने सैनिक वीरों की
क्या बात करूँ अपने सैनिक वीरों की
हर बार ही लफ्ज़ कम पड़ जाते हैं
ज़िक्र करूँ जो उनके बलिदानों का
मेरे अपने फ़र्ज़ कम पड़ जाते हैं
वो खड़े हैं जो देश की लकीरों पर
तभी कागज़ की लकीरों पर गीत लिखो रहे हैं
वो जाग रहे हैं तभी हम सो रहे हैं ।
वो जाग रहे हैं तभी हम सो रहे हैं ।।
वो जिनकी सारी जवानी सरहद पर है
जिनकी हर ईद - दिवाली सरहद पर है ,
वो जो इतना कुछ सहते हुए भी भर नहीं जाते
वो जो साल साल भर अपने घर नहीं जाते ,
वो जिन्होंने अपने बच्चों के बढ़ते अरमान नहीं देखे
वो जिन कईओं ने अपने माँ बाप के शमशान नहीं देखे ,
वो जो सर्दी-गर्मी, सुख-दुख अकेले सह रहे हैं
फिर भी वंदे-मातरम हस कर कह रहे हैं ,
वो जिनके बटुए में बंद उनके प्यार हैं
वो जो देश के लिए मरने-मारने को त्यार हैं ,
वो जिनकी बहादुरी - इस देश की निशानी है
और जिनकी शहादत - अखबार के छठे पेज के
एक छोटे से कॉलम की कहानी है ,
वो जो चुप चाप सरहद पर अपना धर्म निभा रहे हैं
और हम जैसे घर बैठे देश भक्ति के राग रो रहे हैं ,
वो जाग रहे हैं तभी हम सो रहे हैं ।
वो जाग रहे हैं तभी हम सो रहे हैं ।।
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Thanks for your valuable time and support. (Arun Badgal)