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Showing posts from September, 2018

MERA SHEHAR

आज तक यह घर था मेरा , पहचान थी मेरी , चंद चौराहे और कुछ गलियां इसकी जिनपे दौड़ा करती थी हर ख्वाहिश , हर उम्मीद मेरी , हर सपना मेरा जो चला गया कहीं तेरे क़दमों के संग , अब जैसे रूठ सा गया है मेरा शहर .... जिनपे भागा चला आता था कभी तेरे शहर को , अब यहाँ के रास्ते कहीं जाते नहीं हैं , कहीं से भी आते नहीं हैं , ख़ुद में ही समा जाता है हर मोड़ यहाँ का , अब जैसे टूट सा गया है मेरा शहर । अब जैसे टूट सा गया है मेरा शहर ।। जो कभी महका करती थी चमेली की खुशबू की तरह , अब रुक सी गयी हैं यहाँ की हवाएँ , हर पत्ता अब शाख़ से टूट कर सीधा ज़मीन पर गिर जाता है , किसी को भी एक झोंका तक नसीब नहीं होता , अब जैसे थम सा गया है मेरा शहर .... अब भी हर रोज़ यहाँ सूरज तो निकलता है , लेकिन रौशनी नहीं होती , हर किरण इसकी जो धरती से टकरा के समा जाती थी मुझमें ही कहीं , अब उनमें भी वो ताप ना रहा , अब जैसे नम सा गया है मेरा शहर । अब जैसे नम सा गया है मेरा शहर  ।। सच बताऊँ तो रौनकें चली गई हैं , हर ख़ुशी चली गयी है यहाँ की , अब बस एक शोर सा रह गया है , बेज़ो...