क्या बात करूँ इस दुनिया की मैं लो मेरे दोनों हाथ खड़े हैं , खुद से भी तन्हा अकेला हूँ मैं और कहने को सब साथ खड़े हैं , लाखों के मज्मे पर पहचान कोई ना चेहरे पर लेकर सब नक़ाब खड़े हैं। क्या बात करूँ इस दुनिया की मैं लो मेरे दोनों हाथ खड़े हैं । किस किसका दूँ जवाब मैं यारो हर ज़ुबान पर बीस सवाल खड़े हैं , हर सवाल का एक जवाब भी दूँ तो हर जवाब पर बीस बवाल खड़े हैं, यही सोच के चुप्पी साध लेता हूँ कि दिल पे पहले ही बीस सौ मलाल खड़े हैं। क्या बात करूँ इस दुनिया की मैं लो मेरे दोनों हाथ खड़े हैं । सपनों की गठड़ी लेकर निकले थे घर से कि आगे सब हम-ख़याल खड़े हैं, लेकिन खयालों की हसती ही क्या इस दौड़ में सब इख्तलाल खड़े हैं, आँख खुली तो इहसास हुआ कि अपनी ही ज़मीन पर हम ख़ुद बे-हाल खड़े हैं। क्या बात करूँ इस दुनिया की मैं लो मेरे दोनों हाथ खड़े हैं । दूर से देखा तो यूँ लगा कि सब हाथों में लेकर गुलाल खड़े हैं, पास पहुँचने पर पता चला कि सबके हाथ खून से लाल पड़े हैं, घूमूँ लेकर कितने फांसी के फंदे कदम-कदम यहाँ कसाब खड़े हैं। क्या बात करूँ इस दुनिया की मैं लो मेरे दोनो...
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