लम्हों के साथ लुका-छिपी के खेल में , सब ढूंढ लिया जो भी छुपा था दिल की दीवारों के पीछे , सब थाम लिया जो भी आया इन हाथों की लकीरों के नीचे , इस ज़हन की तदबीरों के नीचे ,जो चाहा सब पाया , और यह सब पाने की दौड़ में बस एक ज़िन्दगी गुम गई है , कंधों पे लटके थैले देखे तो सब भरा पड़ा है , पर ख़ाली हाथ देखे तो पता चला कि वो एक घड़ी गुम गई है। वो घड़ी जो तुमने खुद बाँधी थी मेरे हाथों में , जिसने एक आस जगादी थी मेरे हाथों में , जिसने रुकी हुई नबज़ चलादी थी मेरे हाथों में , वो घड़ी जिसके कांटे हम दोनों थे , जिसकी टिक-टिक में छुपे सन्नाटे हम दोनों थे , जिसके घंटे ,मिनट और सैकंड में बांटे हम दोनों थे , वो घड़ी जिसे हम खुद चाबी दे के चलाते थे , जिसकी रफ़्तार के साथ हम दोनों चलते जाते थे , जो रुक जाती थी तो हमारे साँस थम जाते थे , वो घड़ी जो हर घड़ी में मज़ा देती थी , ख़ुशी-ग़म हर हाल में रज़ा देती थी , वो घड़ी जो हमें जीने की वजह देती थी , वो घड़ी हमारी घड़ी थी , जो हमें समय देती थी , अब जो हाथ पे बाँधा है वो सिर्फ एक यंत्र है , जो सिर्फ समय दिखाता है , समय देता नहीं , अख़ीर इस ज़िन्दगी के दाव
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