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MEHMAAN

कहने को तो इस शव के दीवान हैं सब,
पर सच पूछो तो अपने ही घर मेहमान हैं सब।
क्या हसीन पल है जो महफ़िलें सजी हैं ,
शायद अगले ही दम शमशान है सब।

शाह का उधार संग सूद मोड़ दिया ,
पर साँसों के क़र्ज़ में बेईमान हैं सब।
सर झुकाया पंडित को, नाक रगड़ी काज़ी के कदमों में ,
ऐ ख़ुदा तेरे कदरदान हैं सब।

फिरान में बंद बदन के आकार तक माप लिए ,
विचारों से नैतिक बुद्धि से विद्वान हैं सब।
अँधेरे में कोई मासूम देख हैवानियत निकल आई ,
वरना दिन के उजाले में इंसान हैं सब।

हर रोज़ हज़ार-मनी गौ भोग लगते हैं ,
वाह! कितने मेहरबान हैं सब।
सुना कल वोह चौक में भिखारी भूख से मर गया ,
अब मेहरबान क्यों सुनसान हैं सब।

सोचा था अल्फ़ाज़ों से जीत लेंगे हम भी जंग अपनी ,
हज़ार बार कलम चली पर अनजान रहे सब ,
वही ज़ेहन है , वही सोच है , वही विचार हैं ,
अब ज़रा सी ज़ुबान चली तो भला क्यों हैरान हैं सब।

कहने को तो इस शव के दीवान हैं सब,
पर सच पूछो तो अपने ही घर मेहमान हैं सब । ।


Kehne ko to is shav ke diwan hai sab
Par sach pucho to apne hi ghar mehmaan hai sab ...
Kya haseen pal hai jo mehfilein saji hain ,
Shayad agle hi dum shamshaan hai sab ...

Shah ka udhaar sang sood morh diya ,
Par saanson ke karz mein beimaan hai sab ...
Sir jhukaya pandit ko naak ragdi kazi ke kadmo mein ,
Aye Khuda tere kadardaan hai sab...

Phiran mein band badan ke akaar tak maap liye,
Vicharon se naitik budhi se vidhwaan hai sab ...
Andhere mein koi masoom dekh haiwaniyat nikal aayi ,
Varna din ke ujaale mein to insaan hai sab ....

Har roz hazar mani gau bhog lagte hain,
Waah! kitne meharbaan hai sab...
Suna kal woh chowk mein bhikhari bhukh se mar gya,
Ab meharbaan kyu sunsaan hai sab...


Socha tha alfazon se jeet lenge hum bhi apni jang,
Hazar baar kalam chali par anjaan rhe sab...
Wohi zehan hai, wohi soch hai, wohi vichaar hain ,
Ab zara si zuban chali to bhala kyu hairaan hai sab ...

Kehne ko to is shav ke diwan hai sab
Par sach pucho to apne hi ghar mehmaan hai sab ...

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NA MANZOORI

ਮੈਂ ਸੁਣਿਆ ਲੋਕੀਂ ਮੈਨੂੰ ਕਵੀ ਜਾਂ ਸ਼ਾਇਰ ਕਹਿੰਦੇ ਨੇ  ਕੁਝ ਕਹਿੰਦੇ ਨੇ ਦਿਲ ਦੀਆਂ ਦੱਸਣ ਵਾਲਾ  ਕੁਝ ਕਹਿੰਦੇ ਨੇ ਦਿਲ ਦੀਆਂ ਬੁੱਝਣ ਵਾਲਾ  ਕੁਝ ਕਹਿੰਦੇ ਨੇ ਰਾਜ਼ ਸੱਚ ਖੋਲਣ ਵਾਲਾ  ਤੇ ਕੁਝ ਅਲਫਾਜ਼ਾਂ ਪਿੱਛੇ ਲੁੱਕਿਆ ਕਾਇਰ ਕਹਿੰਦੇ ਨੇ  ਪਰ ਸੱਚ ਦੱਸਾਂ ਮੈਨੂੰ ਕੋਈ ਫ਼ਰਕ ਨਹੀਂ ਪੈਂਦਾ  ਕਿ ਕੋਈ ਮੇਰੇ ਬਾਰੇ ਕੀ ਕਹਿੰਦਾ ਹੈ ਤੇ ਕੀ ਕੁਝ ਨਹੀਂ ਕਹਿੰਦਾ  ਕਿਉਂਕਿ ਮੈਂ ਆਪਣੇ ਆਪ ਨੂੰ ਕੋਈ ਕਵੀ ਜਾਂ ਸ਼ਾਇਰ ਨਹੀਂ ਮੰਨਦਾ  ਕਿਉਂਕਿ ਮੈਂ ਅੱਜ ਤਕ ਕਦੇ ਇਹ ਤਾਰੇ ਬੋਲਦੇ ਨਹੀਂ ਸੁਣੇ  ਚੰਨ ਨੂੰ ਕਿਸੇ ਵੱਲ ਵੇਖ ਸ਼ਰਮਾਉਂਦੇ ਨਹੀਂ ਦੇਖਿਆ  ਨਾ ਹੀ ਕਿਸੇ ਦੀਆਂ ਜ਼ੁਲਫ਼ਾਂ `ਚੋਂ ਫੁੱਲਾਂ ਵਾਲੀ ਮਹਿਕ ਜਾਣੀ ਏ  ਤੇ ਨਾ ਹੀ ਕਿਸੇ ਦੀਆਂ ਵੰਗਾਂ ਨੂੰ ਗਾਉਂਦੇ ਸੁਣਿਆ  ਨਾ ਹੀ ਕਿਸੇ ਦੀਆਂ ਨੰਗੀਆਂ ਹਿੱਕਾਂ `ਚੋਂ  ਉੱਭਰਦੀਆਂ ਪਹਾੜੀਆਂ ਵਾਲਾ ਨਜ਼ਾਰਾ ਤੱਕਿਆ ਏ  ਨਾ ਹੀ ਤੁਰਦੇ ਲੱਕ ਦੀ ਕਦੇ ਤਰਜ਼ ਫੜੀ ਏ  ਤੇ ਨਾ ਹੀ ਸਾਹਾਂ ਦੀ ਤਾਲ `ਤੇ ਕਦੇ ਹੇਕਾਂ ਲਾਈਆਂ ਨੇ  ਪਰ ਮੈਂ ਖੂਬ ਸੁਣੀ ਏ  ਗੋਹੇ ਦਾ ਲਵਾਂਡਾ ਚੁੱਕ ਕੇ ਉੱਠਦੀ ਬੁੜੀ ਦੇ ਲੱਕ ਦੀ ਕੜਾਕ  ਤੇ ਨਿਓਂ ਕੇ ਝੋਨਾ ਲਾਉਂਦੇ ਬੁੜੇ ਦੀ ਨਿਕਲੀ ਆਹ  ਮੈਂ ਦੇਖੀ ਏ  ਫਾਹਾ ਲੈ ਕੇ ਮਰੇ ਜੱਟ ਦੇ ਬਲਦਾਂ ਦੀ ਅੱਖਾਂ `ਚ ਨਮੋਸ਼ੀ  ਤੇ ਪੱਠੇ ਖਾਂਦੀ ਦੁੱਧ-ਸੁੱਕੀ ਫੰਡਰ ਗਾਂ ਦੇ ਦਿਲ ਦੀ ਬੇਬਸੀ  ਮੈਂ ਸੁਣੇ ਨੇ  ਪੱਠੇ ਕਤਰਦੇ ਪੁਰਾਣੇ ਟੋਕੇ ਦੇ ਵਿਰਾਗੇ ਗੀਤ  ਤੇ ਉਸੇ ਟੋਕੇ ਦੀ ਮੁੱਠ ਦੇ ਢਿੱਲੇ ਨੱਟ ਦੇ ਛਣਛਣੇ  ਮੈਂ ਦੇਖਿਆ ਏ 

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