आज अपनी कुछ पुरानी किताबों में बंद कुछ काले किये हुए कागज़ देख रहा था , उनमें से एक ख़्याल, जो कि मेरे दिल के काफ़ी करीब है , आपकी नज़र कर रहा हूँ।
ना मन्ज़िलों का पता है , ना रास्तों की ख़बर ,
फिर भी चलता जा रहा हूँ ,
पल दो पल का साथ और फिर ज़िन्दगी भर का सबर ,
फिर भी चलता जा रहा हूँ ,
उनकी हर साँसों की कदर , पर वो मेरे ज़ज़्बातों से बेख़बर ,
फिर भी चलता जा रहा हूँ ,
जानता हूँ इस ओर ना उसका घर, इस रास्ते के अंत पर मिलेगी कबर ,
फिर भी चलता जा रहा हूँ ,
एक प्यास के साथ, एक एहसास के साथ,
कि कभी तो मिलेंगे वो एक आस के साथ ,
चलता जा रहा हूँ , बस चलता ही जा रहा हूँ ,
और यूँ ही चलता रहेगा यह सफर , जब तक मिल ना जाएं ,
तुम हमें , या फिर हम इस ख़ाक में ,
चलता जा रहा हूँ , बस चलता ही जा रहा हूँ।
( Na manzilon ka pta hai, na raaston ki khabar ,
Phir bhi chalta ja rha hu ,
Pal do pal ka sath aur phir zindagi bhar ka sabar ,
Phir bhi chalta ja rha hu ,
Unki har saanson ki kadar , par wo mere zazbaaton se bekhabar ,
Phir bhi chalta ja rha hu ,
Jaanta hu is aur na uska ghar, is raaste k ant par milegi kabar ,
Phir bhi chalta ja rha hu ,
Ek pyaas k sath, ek ehsaas k sath ,
Ki kbi to milege wo ek aas k sath ,
Chalta ja rha hu , Bas chalta hi ja rha rha hu ,
Aur yun hi chalta rhega yeh safar , jab tak mil na jaye ,
Tum humein , ya phir hum is khaak mein ,
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Thanks for your valuable time and support. (Arun Badgal)