आज कुछ सुन्ने की ज़िद ना करो , क्योंकि आज मैं तो हूँ पर मैं नहीं।
आज दबे रहने दो तूफानों को , थम जाने दो इन हवाओं को ,
आज छेड़ों ना ग़मखानों को , सो लेने दो इन सदाओं को ,
आज लगाओ ना कचिहरी ज़ज़्ब-ए-नामों की ,
आज खोलो ना मसल-ए-गुनाहों को ,
क्योंकि आज कटहरे में खड़ा मैं बुत तो हूँ ,
पर इस बुत में कोई शह नहीं।
आज कुछ सुन्ने की ज़िद ना करो , क्योंकि आज मैं तो हूँ पर मैं नहीं।
आज हिम्मत नहीं मुझमें कलम उठाने की ,
आज हिम्मत नहीं मुझमें अल्फ़ाज़ जुटाने की ,
आज कोशिश कर भी लूँ अगर ज़ुबान हिलाने की ,
पर आज हिम्मत नहीं मुझमें हाल-ए-दिल सुनाने की ,
आज लिख भी दूँ अगर कोई गीत हशर का ,
तो उस गीत में आवाज़ तो होगी पर आवाज़ में कोई लह नहीं।
आज कुछ सुन्ने की ज़िद ना करो , क्योंकि आज मैं तो हूँ पर मैं नहीं।
(Aaj kuch sunne ki zid na kro , kyuki aaj main to hu par main nahi ..
Aaj dabe rehne do toofano ko , tham jaane do in hawaon ko ,
Aaj chhedo na ghamkhano ko , so lene do in sadaon ko,
Aaj lagao na kachhehri zazb-e-namo ki ,
Aaj kholo na masal-e-gunaaho ko,
Kyuki aaj katehre mein khda main but to hu,
Par is but mein koi sheh nahi...
Aaj kuch sunne ki zid na kro , kyuki aaj main to hu par main nahi ..
Aaj himmat nahi mujh mein kalam uthane ki ,
Aaj himmat nahi mujh mein alfaz jutane ki ,
Aaj koshish kar b lu agar zuban hilane ki ,
Par aaj himmat nahi mujh mein haal-e-dil sunane ki,
Aaj likh b du agar koi geet hashar ka ,
To us geet mein awaz to hogi par awaz mein koi leh nahi,
Aaj kuch sunne ki zid na kro , kyuki aaj main to hu par main nahi ..)
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आज दबे रहने दो तूफानों को , थम जाने दो इन हवाओं को ,
आज छेड़ों ना ग़मखानों को , सो लेने दो इन सदाओं को ,
आज लगाओ ना कचिहरी ज़ज़्ब-ए-नामों की ,
आज खोलो ना मसल-ए-गुनाहों को ,
क्योंकि आज कटहरे में खड़ा मैं बुत तो हूँ ,
पर इस बुत में कोई शह नहीं।
आज कुछ सुन्ने की ज़िद ना करो , क्योंकि आज मैं तो हूँ पर मैं नहीं।
आज हिम्मत नहीं मुझमें कलम उठाने की ,
आज हिम्मत नहीं मुझमें अल्फ़ाज़ जुटाने की ,
आज कोशिश कर भी लूँ अगर ज़ुबान हिलाने की ,
पर आज हिम्मत नहीं मुझमें हाल-ए-दिल सुनाने की ,
आज लिख भी दूँ अगर कोई गीत हशर का ,
तो उस गीत में आवाज़ तो होगी पर आवाज़ में कोई लह नहीं।
आज कुछ सुन्ने की ज़िद ना करो , क्योंकि आज मैं तो हूँ पर मैं नहीं।
(Aaj kuch sunne ki zid na kro , kyuki aaj main to hu par main nahi ..
Aaj dabe rehne do toofano ko , tham jaane do in hawaon ko ,
Aaj chhedo na ghamkhano ko , so lene do in sadaon ko,
Aaj lagao na kachhehri zazb-e-namo ki ,
Aaj kholo na masal-e-gunaaho ko,
Kyuki aaj katehre mein khda main but to hu,
Par is but mein koi sheh nahi...
Aaj kuch sunne ki zid na kro , kyuki aaj main to hu par main nahi ..
Aaj himmat nahi mujh mein kalam uthane ki ,
Aaj himmat nahi mujh mein alfaz jutane ki ,
Aaj koshish kar b lu agar zuban hilane ki ,
Par aaj himmat nahi mujh mein haal-e-dil sunane ki,
Aaj likh b du agar koi geet hashar ka ,
To us geet mein awaz to hogi par awaz mein koi leh nahi,
Aaj kuch sunne ki zid na kro , kyuki aaj main to hu par main nahi ..)
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Thanks for your valuable time and support. (Arun Badgal)