यह कुछ पंक्तियाँ एक आज़ाद दोस्त के आज़ाद शहर की आज़ाद सोच के नाम।
एक तेरा शहर है , एक मेरा शहर है।
दोनों शहरों की ज़मीन एक है , आसमान एक है ,
दोनों शहरों की फ़िज़ा एक है।
पर ना-जाने क्यों , तेरे शहर की सपनों की महक
मेरे शहर आते ही बेबसी के आलम में बदल जाती है ,
ना-जाने क्यों , तेरे शहर से मेरे शहर आते
सारे क़ायदे बदल जाते हैं।
तेरे शहर से अपने शहर आते ही ,
मेरे रंग बदल जाते हैं , मेरे ढंग बदल जाते हैं ,
मेरा दिल बदल जाता हैं , मेरे अंग बदल जाते हैं।
तेरे शहर की सोच जो मुझे पंख लगा के भेजती है ,
वो पंख मेरे शहर आते ही लोगों के बोल क़तर जाते हैं।
चारों और से ताड़ती निग़ाहों की नज़र से ,
मेरे होंसले डर जाते हैं, लफ्ज़ मर जाते हैं,
मेरे गीत ख़ुदकुशी कर जाते हैं।
एक तेरा शहर है , एक मेरा शहर है।
Beautiful
ReplyDelete👍👍
ReplyDelete