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TERA SHEHAR

यह कुछ पंक्तियाँ एक आज़ाद दोस्त के आज़ाद शहर की आज़ाद सोच के नाम।

एक तेरा शहर है , एक मेरा शहर है। 
दोनों शहरों की ज़मीन एक है , आसमान एक है ,
दोनों शहरों की फ़िज़ा एक है। 
पर ना-जाने क्यों , तेरे शहर की सपनों की महक 
मेरे शहर आते ही बेबसी के आलम में बदल जाती है ,
ना-जाने क्यों , तेरे शहर से मेरे शहर आते 
सारे क़ायदे बदल जाते हैं। 
तेरे शहर से अपने शहर आते ही ,
मेरे रंग बदल जाते हैं , मेरे ढंग बदल जाते हैं ,
मेरा दिल बदल जाता हैं , मेरे अंग बदल जाते हैं। 
तेरे शहर की सोच जो मुझे पंख लगा के भेजती है ,
वो पंख मेरे शहर आते ही लोगों के बोल क़तर जाते हैं। 
चारों और से ताड़ती निग़ाहों की नज़र से ,
मेरे होंसले डर जाते हैं, लफ्ज़ मर जाते हैं,
मेरे गीत ख़ुदकुशी कर जाते हैं। 
एक तेरा शहर है , एक मेरा शहर है। 

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